धर्म-संस्कृति

भाईचारे की मिसाल : दो भाइयों की एकता की कहानी

हिमाचल प्रदेश में एक छोटा सा गांव था, जिसका नाम कोठी था। यह गांव पहाड़ियों और हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ था। यहां के लोग सादगी और प्रेम से रहते थे। इसी गांव में चमन और दीपक नाम के दो भाई रहते थे। दोनों भाई बचपन से ही एक-दूसरे के साथ खेलते-कूदते और मिलजुल कर रहते थे। उनके परिवार में उनके माता-पिता, दादी और दादा सुंदर राम जी थे। सुंदर राम जी गांव के सम्मानित व्यक्ति थे और उनकी बुद्धिमानी और न्यायप्रियता के कारण गांव वाले उनका बहुत आदर करते थे। दादी भी बहुत प्यारी और समझदार थीं, जो हमेशा परिवार को एकता और प्रेम का पाठ पढ़ाती थीं।

एक दिन की बात है, चमन और दीपक जंगल में लकड़ियां इकट्ठा करने गए। दोपहर का समय था, और दोनों भाई जंगल में गहराई तक चले गए। अचानक उनकी नजर एक पुराने पेड़ के नीचे पड़ी एक पोटली पर पड़ी। पोटली देखकर दोनों भाई उत्सुक हो गए। चमन ने पोटली उठाई और उसे खोलकर देखा तो उसमें एक लाख रुपये थे। दोनों भाई खुशी से झूम उठे। उन्होंने सोचा कि यह पैसा उनकी जिंदगी बदल देगा।

लेकिन खुशी ज्यादा देर तक नहीं रही। चमन ने कहा, “यह पैसा मेरा है क्योंकि मैंने पोटली पहले देखी थी।” दीपक ने जवाब दिया, “नहीं, यह पैसा मेरा है क्योंकि मैंने इसे पहले उठाया था।” दोनों भाई इस बात पर झगड़ने लगे। उनकी आवाज इतनी तेज हो गई कि आसपास के पक्षी भी डरकर उड़ गए। दोनों भाई एक-दूसरे को दोष देने लगे और लड़ते-लड़ते गांव की ओर चल पड़े।

गांव पहुंचकर वे सीधे अपने दादा सुंदर राम जी और दादी के पास गए। दादा जी बरगद के पेड़ के नीचे बैठे हुए थे और गांव वालों को कुछ जीवन के सबक सुना रहे थे। दादी भी वहीं बैठी हुई थीं, जो धूप में बैठकर सब्जियां साफ कर रही थीं। चमन और दीपक ने दादा जी और दादी को पूरी कहानी सुनाई और कहा, “दादा जी, दादी, आप ही बताएं कि यह पैसा किसका है?”

दादा जी ने दोनों भाइयों को गंभीरता से देखा और मुस्कुराए। उन्होंने कहा, “बच्चों, लड़ाई से कभी किसी का भला नहीं होता। लड़ाई से नुकसान ही नुकसान है। मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं, शायद इससे तुम्हें समझ में आ जाए कि लड़ाई करना कितना गलत है।”

दादा जी ने कहानी शुरू की, “एक बार की बात है, एक जंगल में बंदर और बिल्लियों के बीच झगड़ा हो गया। बंदरों ने कहा कि यह जंगल उनका है, और बिल्लियों ने कहा कि यह जंगल उनका है। दोनों पक्षों ने लड़ाई शुरू कर दी। लड़ाई इतनी भयंकर हुई कि जंगल के कई पेड़ और पौधे नष्ट हो गए। जानवरों को खाने और पीने की चीजें मिलनी बंद हो गईं। आखिरकार, दोनों पक्षों को एहसास हुआ कि लड़ाई से उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ, बल्कि उन्हें नुकसान ही हुआ है। उन्होंने समझौता किया और जंगल को आपस में बांट लिया। इस तरह से उनकी लड़ाई खत्म हुई और वे फिर से शांति से रहने लगे।”

दादी ने भी दोनों भाइयों को समझाया, “बच्चों, पैसा महत्वपूर्ण है, लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है परिवार और एकता। अगर तुम लड़ोगे तो तुम्हारा प्यार खत्म हो जाएगा, और तुम्हारे रिश्ते कमजोर हो जाएंगे।”

दादा जी ने कहानी सुनाने के बाद दोनों भाइयों से पूछा, “क्या तुम्हें इस कहानी से कुछ सीख मिली?” चमन और दीपक ने सिर झुकाकर कहा, “हां दादा जी, हमें समझ में आ गया है कि लड़ाई से कुछ हासिल नहीं होता।”

दादा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “तो फिर इस पैसे को आपस में बांट लो। एक लाख रुपये को आधा-आधा बांट लो। इस तरह से तुम दोनों को पचास-पचास हजार रुपये मिलेंगे।”

चमन और दीपक ने दादा जी और दादी की बात मान ली और पैसे को आधा-आधा बांट लिया। दोनों भाइयों ने एक-दूसरे से माफी मांगी और गले लग गए। उस दिन के बाद से वे हमेशा प्यार और एकता के साथ रहने लगे। उन्होंने पैसे का सही इस्तेमाल किया और अपने परिवार की मदद की। चमन ने एक छोटी सी दुकान खोल ली, और दीपक ने अपनी पढ़ाई पूरी की। दोनों भाइयों ने गांव के विकास में भी योगदान दिया और गांव वालों के लिए एक उदाहरण बन गए।

दादा सुंदर राम जी और दादी ने देखा कि उनके पोते ने सही रास्ता चुना है और वे बहुत खुश हुए। उन्होंने गांव वालों को समझाया कि लड़ाई से कभी कुछ हासिल नहीं होता, बल्कि एकता और प्रेम से ही सब कुछ संभव है।

इस तरह से चमन और दीपक की कहानी गांव में मशहूर हो गई। लोग उनकी एकता और समझदारी की मिसाल देने लगे। दोनों भाइयों ने साबित कर दिया कि अगर इंसान एकता और प्रेम के साथ रहे तो कोई भी मुश्किल आसान हो सकती है।

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