सोलन, सिरमौर, ऊनाहिमाचल

अदरक की खेती दिखा रही खुशहाली का रास्ता

ऊना।  केंद्र सरकार द्वारा प्रत्येक जिले के विशिष्ट खाद्यान्न उत्पादकों को प्रोत्साहन प्रदान करने की नीति के अंतर्गत सिरमौर जिला में अदरक उत्पादन को प्रोत्साहन प्रदान करने की महत्वकांक्षी योजना शुरु की गई है। सिरमौर जिला में हिमाचल प्रदेश में सर्वाधिक अदरक उत्पादन रिकाॅर्ड किया जाता है तथा इस योजना से सिरमौर के अदरक उत्पादकों द्वारा बीजी जा रही हिमगिरी तथा अन्य देसी प्रजातियों को विशेष रुप से बढ़ावा मिलेगा। राज्य के कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने बताया कि अदरक सिरमौर जिला की सर्वाधिक नकदी फसल है तथा सिरमौर के बाद सोलन में वाणिज्यक तौर पर बड़े पैमाने पर अदरक की खेती की जाती है। उन्होंने बताया कि अदरक को भारतीय व्यंजनों में स्वाद बढ़ाने तथा स्वास्थ्यवर्धक के तौर पर सदियों से रसोई में प्रयोग किया जा रहा है। अदरक उत्पादक अपनी फसल को बड़े पैमाने पर उगाने, उत्पाद के आकर्षक मूल्यों, तथा अदरक पर आधारित उद्योगों की स्थापना के लिए भारत सरकार की आत्मनिर्भर योजना में आशा की नई किरण देख रहे हैं।



कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने बताया कि सिरमौर जिला में अदरक की खेती लगभग 6,000 परिवारों द्वारा अपनाई गई है तथा जिला के छोटे एवं मंझोले किसानों के आर्थिक स्वाबलम्बन में अदरक एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। सिरमौर जिला में अदरक की खेती नाहन, पांवटा साहिब, पच्छाद, राजगढ़, संगड़ाह व शिलाई जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। उन्होंने बताया कि सिरमौर के पांवटा साहिब तथा संगड़ाह क्षेत्रों में कुल उत्पादन का 55 प्रतिशत उत्पादन रिकाॅर्ड दर्ज किया जाता है। सिरमौर जिला में इस समय 16,650 मिट्रिक टन अदरक उत्पादन दर्ज किया जाता है और आगामी पांच साल में जिला में अदरक उत्पादन को दुगना करने का लक्ष्य रखा गया है। अदरक उत्पादन की कृषि लागत 3,60,620 प्रति हैक्टेयर दर्ज की जाती है जबकि प्रति हैैक्टेयर उत्पादन से किसानों को 7,06,880 रूपये प्रति हैक्टेयर की आमदनी मिलती है। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी में अदरक को शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का स्वास्थ्य विकल्प माना जाता है जिसकी वजह से पिछले वर्ष से अदरक की खपत में वृद्धि दर्ज की गई है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अदरक को पकवानों में रसोई के अतिरिक्त काढ़़ा, जूस, सूप तथा रस आदि के तौर पर भी बड़े पैमाने पर प्रयोग में लाया जाता है।



वर्ष के दौरान किसानों से 100 रूपये प्रति किलो की दर से लगभग 800 क्विंटल अदरक खरीदा गया। किसानों को अदरक फसल की खेती के प्रति आकर्षित करने के लिए कृषि विभाग द्वारा अदरक बीज पर 16 रूपये प्रति किलो की सबसिडी प्रदान की जा रही है तथा इसके अतिरिक्त किसानों को नवीनतम तकनीक, उच्च गुणवत्ता के बीज तथा नई कृषि प्रजातियों के प्रति जागरुक एवं प्रशिक्षित करने के लिए अनेक कार्यशालाएं तथा प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जा रहें हैं।

वीरेंद्र कंवर ने बताया कि अदरक की फसल समुद्रतल से 1500 मीटर ऊंचाई पर गर्म तथा आद्रर्ता भरे मौसम में उगाई जाती है। उन्होंने बताया कि इस समय अदरक में सड़न का रोग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, मार्किटिंग अदरक उत्पादकों की मुख्य समस्याएं है जिन्हें सरकार प्राथमिकता के आधार पर सुलझानें के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार जिला में अदरक प्रोसैसिंग की विभिन्न लघु कुटीर ईकाईयां स्थापित करने का प्रयास कर रही हैं ताकि दूसरे राज्यों को तैयार उत्पाद बेचे जा सकें।
सिरमौर में इस समय किसान अदरक को स्थानीय मंडी में खाद्यान्न के तौर पर बेचते हैं जबकि अदरक का बीज पड़ोसी राज्यों उतराखंड, हरियाणा के किसानों को बेचा जाता है। कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने बताया कि हिमाचल में पैदा होने वाले उच्च गुणवत्ता के अदरक की मांग महानगरों में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि हिमाचली अदरक को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मदरडेरी बूथों के अतिरिक्त चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई तथा कोलकता जैसे महानगरों में भी बेचने के प्रयास किए जा रहे है।



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