धर्म-संस्कृति
भागवत महापुराण वेदों का सार : भाग्यश्री
शिमला। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय क्योंथल बैंक्वेट हॉल खलीनी में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया है। प्रथम दिवस की कथा के प्रारम्भ में बालकृष्ण महाजन, सुनील शर्मा, नीरज शर्मा और विजय अर्की वालों ने पूजन किया।प्रथम दिवस की कथा में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या भागवताचार्या कथा व्यास साध्वी सुश्री भाग्यश्री भारती जी ने श्रीमद् भागवत कथा का महत्व बताते हुए कहा कि भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा जाता है।
साध्वी जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि श्रीमद्भागवत अर्थात जो श्री से युक्त है अर्थात चैतन्य,सौंदर्य,ऐश्वर्य यानी वह कथा जो हमारे जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार करती है।जो हमारे जीवन को सुंदर बनाती है वह श्रीमद् भागवत कथा है। साध्वी जी ने बताया कि यह ऐसीअमृत कथा है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इसलिए परीक्षित ने स्वर्ग अमृत की बजाय कथामृत की ही मांग की।
कथा के दौरान उन्होंने वृंदावन का अर्थ बताते हुए कहा कि वृंदावन इंसान का मन है।कभी-कभी इंसान के मन में भक्ति जागृत होती है, परंतु वह जागृति स्थाई नहीं होती। इसका कारण है कि हम ईश्वर की भक्ति तो करते हैं पर हमारे अंदर वैराग्य व प्रेम नहीं होता। इसलिए वृंदावन में जाकर भक्ति देवी तो तरुण ही हो गई पर उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य अचेत और निर्बल पड़े रहते हैं।उनमें जीवंतता और चैतन्यता का संचार करने हेतु नारद जी ने भागवत कथा का ही अनुष्ठान किया।जिसको श्रवण कर वह पुनः जीवन्त और सफल हुए थे। व्यास जी कहते हैं कि भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भांति है, जो जिस भाव से कथा श्रवण करता है वह उसे मनोवांछित फल देती है। अशोक शर्मा महाधिवक्ता हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कथा में विशेष रूप से पहुंचकर प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त किया एल। कथा का समापन प्रभु की मंगल आरती से किया गया।
साध्वी जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि श्रीमद्भागवत अर्थात जो श्री से युक्त है अर्थात चैतन्य,सौंदर्य,ऐश्वर्य यानी वह कथा जो हमारे जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार करती है।जो हमारे जीवन को सुंदर बनाती है वह श्रीमद् भागवत कथा है। साध्वी जी ने बताया कि यह ऐसीअमृत कथा है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इसलिए परीक्षित ने स्वर्ग अमृत की बजाय कथामृत की ही मांग की।
कथा के दौरान उन्होंने वृंदावन का अर्थ बताते हुए कहा कि वृंदावन इंसान का मन है।कभी-कभी इंसान के मन में भक्ति जागृत होती है, परंतु वह जागृति स्थाई नहीं होती। इसका कारण है कि हम ईश्वर की भक्ति तो करते हैं पर हमारे अंदर वैराग्य व प्रेम नहीं होता। इसलिए वृंदावन में जाकर भक्ति देवी तो तरुण ही हो गई पर उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य अचेत और निर्बल पड़े रहते हैं।उनमें जीवंतता और चैतन्यता का संचार करने हेतु नारद जी ने भागवत कथा का ही अनुष्ठान किया।जिसको श्रवण कर वह पुनः जीवन्त और सफल हुए थे। व्यास जी कहते हैं कि भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भांति है, जो जिस भाव से कथा श्रवण करता है वह उसे मनोवांछित फल देती है। अशोक शर्मा महाधिवक्ता हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कथा में विशेष रूप से पहुंचकर प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त किया एल। कथा का समापन प्रभु की मंगल आरती से किया गया।