अहोई अष्टमी व्रत कल, संतान की समृद्धि के लिए रखे जाने वाले इस व्रत की यह है कथा
पति की दीर्घायु की कामना के बाद महिलाओं के लिए अब बारी है अहोई अष्टमी का व्रत रखने की। अहोई अष्टमी व्रत संतान प्राप्ति की कामना करने के लिए और संतान की दीर्घायु के लिए किया जाता है। अहोई अष्टमी का पर्व हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता (पार्वती) की पूजा की जाती है। इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 8 नवंबर को रखा जाएगा।
शुभ मुहूर्त
स वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत 17 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा. अष्टमी तिथि 17 अक्टूबर, 2022 को सुबह 09 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर 18 अक्टूबर, 2022 को सुबह 11 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगी. अहोई अष्टमी पूजा का मुहूर्त शाम को 06 बजकर 13 मिनट से 07 बजकर 27 मिनट यानी कुल 01 घंटा 14 मिनट की अवधि तक रहेगा।
अहोई अष्टमी व्रत की कथा
साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटीभाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते, वे सात दिन बाद मर जाते। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरीइच्छा हो वह मुझ से मांग ले। साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं। यदि आप मेरी कोख खुलवा देतो मैं आपका उपकार मानूंगी। गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरुड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहूने उसके बच्चे को मार दिया है। इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है। स्याहु छोटी बहू को सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं का आर्शीवाद देती है। और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिलीं। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देकर उद्यापन किया। अहोई का अर्थ एक यह भी होता है ‘अनहोनी को होनी बनाना।’ जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकार की बहु की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करें।