सावधान! मंकीपॉक्स है खतरनाक, लेकिन ऐसे हो सकता है बचाव
शिमला। कोरोना के बाद अब विश्व में मंकी पॉक्स की दहशत बढ़ती जा रही है। कोरोना अभी ठीक से खतम नहीं हुआ है और मंकी पॉक्स की दहस्त ने लोगों को नए खौफ में डाल दिया है। विभिन्न राज्यों ने अपने नागरिकों को इस बीमारी से बचने के लिए एडवायजरी जारी की है। बताया जाता है कि मंकीपाॅक्स स्मालपॉक्स की फैमिली के वायरस द्वारा फैलने वाला संक्रामक रोग है, जिसे पहली बार प्रयोगों के लिए लाए गए एक बंदर में 1950 में पाया गया। बंदरों के अतिरिक्त इसे चूहों और गिलहरियों को भी संक्रमित करते हुए पाया गया है। इन्हीं जानवरों से यह मनुष्य तक पहुंचा। वैसे तो यह कोविड-19 जैसा बहुत तेजी से फैलने वाला संक्रामक रोग नहीं है किंतु भयभीत करने लायक तो है ही। आज अब तक यह 24 देशों तक पहुंच चुका है।
संक्रमण का तरीका :
। यह रोग चार चरणों में चेचक की तरह फैलता है, जिसमें हर चरण में अलग अलग लक्षण दिखते हैं। संक्रमित जानवर अथवा मनुष्य के सीधे संपर्क में आने से यह वायरस मुंह, नाक, आंख,कटी-फटी त्वचा एवं शारीरिक संसर्ग के रास्ते अन्य मनुष्य अथवा जानवर तक पहुंच जाता है। संक्रमित व्यक्ति द्वारा प्रयोग किए गए बिस्तर अथवा वस्त्रों द्वारा भी इसका संक्रमण संभव है।
इनक्यूबेशन पीरियड :
यह प्रथम रोग लक्षण मिलने के पहले का वह समय है जिसमें नए संक्रमित मरीज के भीतर संक्रामक वायरस अपनी कॉलोनी विकसित करता होता है। इस संक्रमण में वह समय 3 से 7 दिन का है।
लक्षण :
1- सर्वप्रथम सर दर्द बुखार और बदन दर्द के लक्षण प्रकट होते हैं।
2- फिर छाती और आर्मपिट में लाल रंग रैशेज दिखाई पड़ते हैं। जिनमें तेज खुजली होती है।
3- स्मालपॉक्स की तरह के छाले सर्वप्रथम चेहरे पर दिखाई पड़ते हैं फिर हाथ और पैर के तलवों में यह छाले ज्यादा निकलते हैं।।
4- एक-दो दिन बाद इन छालों का प्रकोप पूरे शरीर पर दिखाई पड़ने लगता है।
5- पानी भरे छालों में खुजली रहती है।
6- स्मालपाॅक्स की तरह मंकीपॉक्स के छालों में भी क्रमशः परिवर्तन होते हैं।
7- बाद में छालों में मवाद भर जाता है दो-तीन दिन उपरांत यह मवाद भी सूख कर चालू पर मोटी मोटी पिपड़िया(स्केल्स) पड़ जाती हैं।
8- अंत में सारे स्केल्स धीरे-धीरे छूटकर गिर जाते हैं और त्वचा पर गहरे दाग छोड़ते हैं।
9- इस रोग की संक्रामक अवस्था 14 से 16 दिन तक की है।
10- मृत्यु दर कम है किंतु है।
बचाव :
1- संक्रमित देशों की यात्रा करने से बचा जाए। अथवा जिस एरिया में संक्रमित मरीज मिले हों वहां न जाया जाए।
2- बंदर चूहे और गिलहरियों से दूर रह जाए।
3- संक्रमित मनुष्य के सीधे संपर्क मैं आने से बचा जाए।
4- संक्रमित व्यक्ति को चेचक के लिए बने अस्पताल अथवा घर में ही किसी अलग कमरे में आइसोलेट किया जाए।
5- संक्रमित देशों अथवा जगह से लौटे यात्रियों की हवाई अड्डों पर ही जांच करवाई जाए।
6- होटलों और ट्रेन में एपिडेमिक के समय पहले से बिछे बिछावन का प्रयोग ना करें।
7- टीकाकरण करवाया जाए।
8- अनावश्यक भयभीत होकर अपने इम्यून सिस्टम को कमजोर ना करें।
चिकित्सा :
1-यदि एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति की बात की जाए तो इस रोग से लड़ने के लिए उसके पास कोई विशेष दवा नहीं है। बुखार दर्द खुजली के लिए वी कुछ कंजरवेटिव दवाई दे सकते हैं।
2- स्मालपॉक्स दुनिया से जा चुका है। परंतु उससे बचाव के लिए बनाई गई एलोपैथिक वैक्सीन अब भी उपलब्ध है । वह मंकीपॉक्स पर भी 85% तक कारगर है।
होम्योपैथिक चिकित्सा :
मंकीपॉक्स के लिए होम्योपैथी सबसे उपयुक्त चिकित्सा पद्धति है। क्योंकि इसके पास रोग से पहले बचाव के लिए और हो जाने के बाद चिकित्सा के लिए भी कारगर लाक्षणिक दवाएं उपलब्ध है। लेकिन औषधियों को होम्योपैथिक चिकित्सक की राय पर ही लिया जाए।
प्रस्तुति-डॉ एम डी सिंह,महाराज गंज गाजीपुर उत्तर प्रदेश