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लेख : विस्थापन-एक दर्द

लेखक-राजीव भूषण अंबिया
जब मेरा जन्म हुआ था तब हम लोग नई जगह पर बस चुके थे आकर ।सन 1971-72 के करीब पौंग डैम का निर्माण हुआ था,यह वो समय है जब शायद डैम बनकर तैयार हो चुका था । हम लोगों ने तो अपने पूर्वजों से सुना था कि यह जो जमीन हिमाचल की पानी डुबो दी गई उस समय जो कि सबसे उपजाऊ जमीन में से एक जमीन थी सुनने में यह भी आया था कि इस जमीन पर हर तरह की फसल उगाई जाती थी केवल और केवल नमक ही बाहर से लिया करते थे । यह हकीकत है या नही यह तो वही लोग जानते होंगे कि आखिर जमीनी हकीकत क्या थी ।


हाँ, इतना तो मैने भी महसूस किया जब जब उस क्षेत्र को देखते है तब तब यह लगता था कि काफी कुछ छीन लिया गया था हमारे लोगों से उस समय । चन्द रसूकदार लोगों तमाम हजारों परिवारों के साथ धोखा किया और हजारों एकड़ जमीन पानी मे डुबो कर इस बांध का निर्माण किया । यह तो हकीकत था भी और हैं भी की विस्थापन कभी भी खुशहाली लेकर नहीं आता । जिस-जिस जगह जाकर हमारे लोग जो विस्थापित हुए बसे हैं उन सभी को एक अजीब सा नाम भी मिला पता नही वो तंज था या कुछ और हर जगह हर उस नाम से उन सभी लोगों को पुकारने लगे “डैमिये”यह शब्द कोई आधिकारिक शब्द भी नही आर टी आई कि जानकारी के अनुसार यह शब्द कहीं है ही नही फिर भी इस शब्द का प्रयोग आजतक लोग हमारे उन परिवारों के लिए करते आ रहें है । जब जब लोग इस शब्द को कहते है तब तब एक अजीब से भावना एक अजीब सा विचार मन में आता है कि क्या हम लोग पाकिस्तान से आये हुए मुहाजिरों की तरह हैं क्या?



देश निर्माण के लिए हमने कुर्बानी दी है जिसकी क्या यह सजा है कि हम लोग के साथ सौतेला व्यवहार किया जाए । अटल जी के शब्द थे यह कि देश निर्माण में यदि चन्द परिवार उजड़ते है तो उजड़ने दो देश पहले है ,हाँ देश सर्वोपरि है पर जातिवाद क्यों? क्यों जातियों के आधार पर सरकार निर्णय लेती है क्यों अब तक बराबर के अधिकार नहीं हैं ?यह यही नहीं रुक बहुत सारी जगहों पर इस तरह का व्यवहार किया गया कि आप लोग सोच ही नही सकते ।मैंने बचपन गुजारा है इस स्तिथि को देखकर जब हम लोग जहां बसे हुए है वहां पर इस शब्द का सम्भोधन करते और हम लोगों के साथ खेलना तक पसंद नहीं करते थे । खैर वक़्त बीतता गया समाज मे हमारी पकड़ बनती गई अब लोग सामने से तो नहीं पर पीछे से जरूर कहते है कि यह डैमिये हैं । पौंग डैम ने बहुत से दर्द दिये है जो कभी भी नहीं भूले जा सकते ।


शायद ही किसी ने इन बातों का कभी जिक्र भी न किया हो जो मैं आज लिख रहा हूँ क्योंकि लोगों के अधिकार छिन गए थे या तो वे खुद को स्थापित करते या फिर इस सब का विरोध जताते। शिक्षा का विस्तार तो इतना था नही की विरोध किया जाता वक़्त बीतता गया हम बड़े होते गए । इतना कि अब इस दर्द को खूब खुद से समझने लगे थे और अब समझ भी रहें है । उस समय जो सरकार ने वायदा किया था वो आज तक पूरा नही हो पाया । आजतक लोगों को मुआवजा नही मिल पाया कारण बहुत से हैं जिस कारण यह सब नही हो पाया अगर उस समय की सरकार चाहती तो खुद हिमाचल में जमीन देकर विस्थापित कर देती पर यह न हो सकता ।



कारण कुछ जातीय थे जिनको हमारे लोग आज भी नहीं समझ पा रहे हैं। यह एक जातीय षडयंत्र था जिसको समझना इतना आसान है कि हर कोई समझ सकता है 1971 के बाद 1982 के करीब एक और डैम का निर्माण हुआ था वहां के विस्थापितों को करोड़ों में मुआवजे के साथ हिमाचल में जगह दी थी और 1971 में मात्र हजारों में ।


बात सिर्फ इतनी सी थी उस जगह से होने बाले लोग राजपूत ज्यादा थे और पौंग डैम से चौधरी थे । खैर उस समय जातिपात इतना ज्यादा था पर लोग समझ ही नहीं पा रहे थे कि हो क्या रहा है कम शिक्षा का होना सब लोगों और भारी पड़ा । चन्द मुठी भर लोगों ने इतनी बड़ी जनसंख्या को विस्थापित किया जो की आज भी पुनर्वसन की राह को देख रहें हैं आज उस पुनर्वसन की लड़ाई पीढ़ियां दर पीढ़ियां समय बीत रहा है न सरकार जग रही न ही हमारे आगे बढ़ रहे । एक पीढ़ी गुज़र चुकी है इस लड़ाई में और दूसरी दहलीज पर है और तीसरी ने आधा सफर तय कर लिया है सरकार ने अपने वायदे के अनुसार उन लोगों स्थापित नही किया ।


पर इन हजारों लोगों ने जो कि आज लाखों की जनसंख्या में है कई वार सरकार बनवा दी कई वार यह लोग ठगे गए कई लोगों को इन विस्थापितों ने नेता बनाकर विधान सभा की ओर भेज दिया कि वे लोग उनकी लड़ाई लड़ेंगे । मेरे जहन में बस एक प्रश्न बार बार आया कि कैसे वो लोग आपकी सहायता करेंगे जब वे लोग इस बात को समझते ही नहीं ।पर यह जरूर समझते हैं कि आप सब वोट बैंक हैं प्रयोग करो। क्यों सब विस्थापित अपना से एक नेता तैयार नही कर पाए संख्या में आज लाखों को पार कर गए पर आज भी दूसरों की ओर ताक रहे हैं क्यों अपने लोगों को आप नेता बनाकर विधानसभा नही भेज सके।


जितने आप लोग हैं उतने में आप अब सरकार बनाने की काबलियत रखते हो। वक़्त आ गया है कि विस्थापन की लड़ाई को उन्हीं के तरीके से लड़ा जाए वक़्त आ गया है आने उन लोगों का साथ देने का जो आपके लिए अपने लिए लड़ सकते हैं वो क्या दर्द समझेगा जिसने कभी विस्थापन देखा नहीं। आज हम लोगो को इस लड़ाई के रुख को बदल कर उन्ही की तरह लड़ने की जरूरत है। (क्रमशः)
(नोट : लेख में दी गई सामग्री लेखक के निजी विचार हैं।)



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