कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लूहिमाचल
कुल्लू के भूंतर में मनाया पांगी का जुकारू उत्सव
कुल्लू । हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू मुख्याल से महज कुछ दूरी पर स्थित भूंतर में रविवार को पांगी छात्र संगठन द्वारा जुकारु उत्सव का आयोजन किया गया। इस मौके पर पांगी घाटी के करयास वार्ड जिला परिषद व उपाध्यक्ष हाकम राणा ने बतौर मुख्य अतिथि के रुप में शिरकत की। इस दौरान सर्वप्रथम छात्र संगठन द्वारा मुख्यातिथी को संमानित कर उसे पंगवाली टोपी भेंट की गई। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पांगी घाटी में 12 दिनों तक आयोजित जुकारु उत्सव घाटी के अलावा प्रदेश के विभिन्न जिलों में आयोजित किया जाता है। जिनमें धर्मशाला, चम्बा वह सोलन में बड़े धूमधाम से इस उत्सव को मनाया जाता है। इस दौरान सर्वप्रथम मुख्य अतिथि को स्मृति चिन्ह भेंट कर उन्हें सम्मानित किया गया उसके बाद दीप प्रज्वलित कर जुकारु का शुभारंभ किया गया मुख्य अतिथि द्वारा मंच पर पंगवाली घुरेई के साथ डांस करके वह डीजे बैंड बाजों की धुन में पंगवाल नृत्य कर इस जुकारु उत्सव का शुभारंभ किया गया। इस दौरान मुख्यतिथी हामम राणा द्वारा छात्र संगठन में 51 हजार रूपए सहायोग राशि दी गई है। वहीं विषेश रूप से मौजूद पांगी जनजातीय सहलहाकार राज कुमार ठाकुर की ओर से 16 हजार की सहायोग राशि प्रदान की गई। जुकारू का त्यौहार समूचे पांगी घाटी में एक जैसा ही मनाया जाता है
इस त्यौहार को घाटी की सांस्कृतिक पहचान और शान कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस त्यौहार पर घाटी की परंपरा कायम है जिसको तीन चरण में मनाया जाता है। सिलह,पड़ीद,मांगल यह त्यौहार फागुन मास की अमावस को मनाया जाता है। इस त्यौहार की कई दिनों पहले ही लोग इसकी तैयारियां करना शुरू कर देते हैं, घरों को सजाया जाता है। घर के अंदर लिखावट के माध्यम से लोक शैली को रेखांकित किया जाता है। विशेष पकवान मंण्डे के अतिरिक्त सामान्य पकवान के बनाए जाते हैं। सिलह त्योहार के दिन घरों में लिखावट की जाती है बलिराज के चित्र बनाए जाते हैं दिन में मंण्डे आदि बनाए जाते हैं। रात को बलिराजा के चित्र की पूजा की जाती है तथा दिन में पकाया सारा पकवान तथा एक दीपक राजा बलि के चित्र के सामने रखा जाता है। रात को चरखा कातना भी बंद कर दिया जाता है सब लोग जल्दी सो जाते हैं। एक दंतकथा कथा के अनुसार भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद के पोते राजा बलि ने अपने पराक्रम से तीनों लोगों को जीत लिया तो भगवान विष्णु को वामन अवतार धारण करना पड़ा। राजा बलि ने वामन अवतार भगवान विष्णु को तीनो लोक दान में दे दिए। इससे प्रसन्न होकर विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि भूलोक में वर्ष में एक दिन उसकी पूजा होगी इसी परंपरा को घाटी के लोग राजा बलिदानों की पूजा करते आ रहे हैं।
दूसरा दिन पडीद का होता है प्रात ब्रह्म मुहूर्त में उठकर लोग स्नानादि करके राजा बलि के समक्ष नतमस्तक होते हैं। इसके पश्चात घर के छोटे सदस्य बड़े सदस्यों के चरण वंदना करते हैं। बड़े उन्हें आशीर्वाद देते हैं राजा बलि के लिए पनघट से जल लाया जाता है लोग जल देवता की पूजा भी करते हैं। इस दिन घर का मुखिया चूर की पूजा भी करता है क्योंकि वह खेत में हल जोतने के काम आता है। पडीदकी सुबह होते ही जुकारू आरंभ होता है जुकारू का अर्थ बड़ों के आदर से है। लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं इस त्यौहार का एक अन्य अर्थ यह है कि सर्दी तथा बर्फ के कारण लोग अपने घरों में बंद थे इसके बाद सर्दी काम होने लग जाती है लोग इस दिन एक दूसरे के गले मिलते हैं तथा कहते हैं तकडा थिया न और जाने के समय कहते हैं मठे मठे विश। लोग सबसे पहले अपने बड़े भाई के पास जाते हैं उसके बाद अन्य संबंधियों के पास जाते है। तीसरा दिन मांगल या ह्यपन्हेईह्ण के रूप में मनाया जाता है पन्हेई किलाड़ परगने में मनाई जाती है जबकि साच परगना में ह्यमांगलह्ण मनाई जाती है।
इस त्यौहार को घाटी की सांस्कृतिक पहचान और शान कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस त्यौहार पर घाटी की परंपरा कायम है जिसको तीन चरण में मनाया जाता है। सिलह,पड़ीद,मांगल यह त्यौहार फागुन मास की अमावस को मनाया जाता है। इस त्यौहार की कई दिनों पहले ही लोग इसकी तैयारियां करना शुरू कर देते हैं, घरों को सजाया जाता है। घर के अंदर लिखावट के माध्यम से लोक शैली को रेखांकित किया जाता है। विशेष पकवान मंण्डे के अतिरिक्त सामान्य पकवान के बनाए जाते हैं। सिलह त्योहार के दिन घरों में लिखावट की जाती है बलिराज के चित्र बनाए जाते हैं दिन में मंण्डे आदि बनाए जाते हैं। रात को बलिराजा के चित्र की पूजा की जाती है तथा दिन में पकाया सारा पकवान तथा एक दीपक राजा बलि के चित्र के सामने रखा जाता है। रात को चरखा कातना भी बंद कर दिया जाता है सब लोग जल्दी सो जाते हैं। एक दंतकथा कथा के अनुसार भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद के पोते राजा बलि ने अपने पराक्रम से तीनों लोगों को जीत लिया तो भगवान विष्णु को वामन अवतार धारण करना पड़ा। राजा बलि ने वामन अवतार भगवान विष्णु को तीनो लोक दान में दे दिए। इससे प्रसन्न होकर विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि भूलोक में वर्ष में एक दिन उसकी पूजा होगी इसी परंपरा को घाटी के लोग राजा बलिदानों की पूजा करते आ रहे हैं।
दूसरा दिन पडीद का होता है प्रात ब्रह्म मुहूर्त में उठकर लोग स्नानादि करके राजा बलि के समक्ष नतमस्तक होते हैं। इसके पश्चात घर के छोटे सदस्य बड़े सदस्यों के चरण वंदना करते हैं। बड़े उन्हें आशीर्वाद देते हैं राजा बलि के लिए पनघट से जल लाया जाता है लोग जल देवता की पूजा भी करते हैं। इस दिन घर का मुखिया चूर की पूजा भी करता है क्योंकि वह खेत में हल जोतने के काम आता है। पडीदकी सुबह होते ही जुकारू आरंभ होता है जुकारू का अर्थ बड़ों के आदर से है। लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं इस त्यौहार का एक अन्य अर्थ यह है कि सर्दी तथा बर्फ के कारण लोग अपने घरों में बंद थे इसके बाद सर्दी काम होने लग जाती है लोग इस दिन एक दूसरे के गले मिलते हैं तथा कहते हैं तकडा थिया न और जाने के समय कहते हैं मठे मठे विश। लोग सबसे पहले अपने बड़े भाई के पास जाते हैं उसके बाद अन्य संबंधियों के पास जाते है। तीसरा दिन मांगल या ह्यपन्हेईह्ण के रूप में मनाया जाता है पन्हेई किलाड़ परगने में मनाई जाती है जबकि साच परगना में ह्यमांगलह्ण मनाई जाती है।