शरद पवार बोले, पंजाब के किसानों को परेशान करना ठीक नहीं, ये है कारण
नई दिल्ली। शरद पवार ने इंदिरा गांधी की हत्या की जिक्र करते हुए केंद्र सरकार को सलाह दी कि पंजाब के किसानों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। बकौल शरद पवार, ‘केंद्र सरकार को कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को संवेदनशीलता के साथ हल करना चाहिए, यह ध्यान में रखते हुए कि अधिकांश प्रदर्शनकारी पंजाब से है जो कि एक सीमावर्ती राज्य से है।’
पंजाब के किसानों को परेशान न होने दें
उन्होंने कहा कि खालिस्तान आतंकवाद के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश ने अतीत में पंजाब को परेशान करने की कीमत चुकाई है। केंद्र सरकार को मेरी सलाह है कि पंजाब के किसानों को परेशान न होने दें, यह एक सीमावर्ती राज्य है। अगर हम किसानों और सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों को परेशान करते हैं, तो इसके अन्य परिणाम होंगे।
सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों को सुरक्षा संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनका अनुभव महाराष्ट्र जैसे राज्यों में रहने वाले लोगों को नहीं होता। इसलिए जब बलिदान देने वाला व्यक्ति लंबे समय से कुछ मांगों के विरोध में बैठा है, तो उस पर ध्यान देना देश को चाहिए।
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा, ‘‘लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है. मुझे उम्मीद है कि सरकार को अक्ल आएगी और वह मुद्दे के समाधान के लिए इसका संज्ञान लेगी. यदि यह गतिरोध जारी रहता है तो प्रदर्शन दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देशभर से लोग प्रदर्शनकारी किसानों के साथ खड़े हो जाएंगे।’
हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं
उल्लेखनीय है कि नए कृषि कानूनों के विरोध में हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्होंने आठ दिसंबर को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है. किसानों और केंद्र के बीच कई दौर की वार्ता के बावजूद मुद्दे का हल नहीं हो पाया है। पवार ने कहा कि पंजाब और हरियाणा के किसानों का देश की कृषि एवं खाद्य श्रृंखला में सर्वाधिक योगदान है। उन्होंने कहा, ‘‘इन राज्यों के किसान न सिर्फ हमारा पेट भरते हैं, बल्कि वे भारत की खाद्य अनाज आपूर्ति, खासकर एक दर्जन से अधिक देशों को चावल और गेहूं की आपूर्ति में बड़े आपूर्तिकर्ता भी हैं.” पवार ने कहा कि जब तीनों कृषि विधेयक संसद में लाए गए तब भाजपा को छोड़कर सभी दलों ने कहा था कि विधेयकों को जल्दबाजी में पारित नहीं किया जाना चाहिए. पार्टियों ने विधेयकों पर चर्चा कराने और इन्हें प्रवर समिति को भेजे जाने की मांग की थी, लेकिन सरकार ने नहीं सुनी और अब उसे परिणाम भुगतने होंगे।