इस ढाबे के है लाखों दीवाने, मांह की दाल, कढ़ी, साग और घी के साथ मक्की की रोटियां लूट रही वाहवाही
हिमाचली पारंपरिक फूड मांह की दाल, कढ़ी, साग और घी के साथ मक्की की रोटी लूट रही वाहवाही
बिलासपुर। दुनियाभर से कुल्लू मनाली और अटल टनल के सफर पर निकले लाखों पर्यटकों को इस सफर पर एक चीज जरूर याद आती है और वो है बिलासपुर में बनने वाली प्रदेश की पारंपरिक मक्की की रोटी और सरसों का साग। चंडीगढ़ से मनाली के सफर के बीच बिलासपुर के घाघस के समीप बागी बनौला में बहादुर के ढाबा की रोटी का स्वाद ही कुछ ऐसा है कि न चाहते हुए भी लोग ब्रेक लगाने को मजबूर हो जाते हैं। वहीं ढाबा संचालक का भी भरोसा है कि जो आदमी एक बार इस ढाबे की रोटी खा लेगा वह पहली बार नहीं बल्कि बार बार खाएगा। गौर हो कि इस ढाबा को वर्ष 1960 के आसपास रोजगार के लिए नेपाल से हिमाचल पहुंचे तारा चंद ने शुरू किया था। इस ढाबे को मात्र चाय पान से शुरू करते हुए उन्हाेंने कभी यह नहीं सोचा था कि यह ढाबा कभी दुनियाभर में भी मशहूर हो जाएगा। उन्होंने 1960 में इस ढाबे से ट्रक चालकों व अन्य राहगीरों के लिए चाय के साथ शुरू किया था। जब बरमाणा में ट्रक यूनियन व अन्य वाहनों की आवाजाही
बढ़ी तो उन्होंने मांह की दाल व मक्की की रोटी को भी शुरू कर दिया था। उसके बाद देखते ही देखते इस ढाबे के पारंपरिक तरीकों और रोटी के स्वाद ने इस ढाबे को देश भर और फिर दुनियाभर में मशहूर बना दिया। इसे 1960 में शुरू करने वाले तारा चंद ने नेपाल से हिमाचल पहुंचकर इस ढाबे को शुरू किया था और फिर थोड़े थोड़े ग्राहकों से अब यह ढाबा लाखों लोगों को अपने स्वाद का दिवाना बना चुका है। इस बहादुर ढाबा में अब चंडीगढ़, पंजाब, दिल्ली व दूर दूर से मनाली की ओर आने-जाने वाले पर्यटक जरूर ब्रेक लगाते हैं। वर्ष 2007 में तारा चंद की मृत्यु हो गई और अब उनके छोटे बेटे 44 वर्षीय रमेश चंद ही बहादुर ढाबे को संभाल रहे हैं। ताराचंद के बड़े बेटे राज कुमार और रमेश चंद दोनों भाई काफी समय तक बहादुर ढाबे को चलाते रहे,
लेकिन 2018 में राजकुमार का भी निधन हो गया और अब रमेश चंद ही इस ढाबे को चला रहे हैं। शुरू से लेकर आज तक इस ढाबे में चूल्हे पर लकड़ी की आंच में ही मक्की की रोटियां और माह की दाल बनाई जाती हैं। माह की दाल के साथ कढ़ी भी यहां बनाई जाती है और जनवरी और फरवरी महीने में यहां मक्की की रोटी के साथ साग भी परोसा जाता है। रमेश चंद बताते हैं कि एक बार उनके यहां जो भी मक्की की रोटी, माह की दाल और देशी घी खाता है वह बार-बार यहां आता है। कई लोग तो यहां से पैक करवा कर भी रोटियां और दाल ले जाते हैं। दिन में यहां आप हिमाचल, पंजाब, चंडीगढ़ और दिल्ली की कई गाड़ियों को रुके हुए देख सकते हैं। रमेश चंद बताते है कि वह घराट का आटा और लोकल माह ही प्रयोग करते हैं।
ढाबे की लोकेशन :
यह बहादुर ढाबा बागी बनौला मे चंडीगढ़ मनाली नेशनल हाई-वे पर स्थित है। अगर आप चंडीगढ़ से मनाली को ओर जा रहे हैं तो यह ढाबा बिलासपुर से आठ किलोमीटर आगे और घाघस से एक किलोमीटर पीछे है और वहीं अगर आप मंडी की तरफ या फिर शिमला की तरफ से बिलासपुर आ रहे हैं तो आपको यह घाघस से एक किलोमीटर बिलासपुर की तरफ बाएं तरफ मिलेगा। इस ढाबे में अब तक दुनिया भर से कई विख्यात विभूतियां स्वाद चखने के लिए पहुंच चुकी हैं।