हमीरपुर। रासायनिक उर्वरकों, अत्यंत जहरीले कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के अत्यधिक प्रयोग ने खेती का खर्चा ही नहीं बढ़ाया है, बल्कि इनके कई अन्य गंभीर परिणाम भी सामने आ रहे हैं। इन खतरनाक रसायनों के कारण जमीन और जल स्रोतों के अलावा आबोहवा तथा हमारे शरीर में भी जहर घुलता जा रहा है। इस जहरयुक्त खेती पर लगाम लगाने तथा किसानों की आय बढ़ाने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने ‘प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान’ योजना आरंभ की है। अल्प अवधि में ही इस योजना के बहुत ही सराहनीय परिणाम सामने आने लगे हैं तथा प्रदेश के किसान बड़ी संख्या में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इन्हीं प्रगतिशील किसानों में से एक हैं हमीरपुर जिला के विकास खंड बिझड़ी के गांव धंगोटा के बलदेव सिंह।शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त बलदेव सिंह का परिवार कई पीढिय़ों से खेती-बाड़ी कर रहा है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण उनका खेती का खर्चा लगातार बढ़ता जा रहा था। आय भी बहुत कम हो रही थी। यही नहीं, उनकी जमीन भी जहरीली बनती जा रही थी। ऐसे हालात में शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद बलदेव सिंह रसायन युक्त उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग के बगैर पारंपरिक खेती आरंभ करना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों में उनके लिए यह इतना आसान नहीं था। वर्षों से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के दम पर खेती कर रहे बलदेव सिंह के परिजनों के मन में प्राकृतिक खेती को लेकर कई शंकाएं थीं।
इस बीच, प्रदेश सरकार द्वारा कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण (आतमा) के माध्यम से आरंभ की गई ‘प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान’ योजना में बलदेव सिंह को एक नई उम्मीद नजर आई। कृषि विभाग के अधिकारियों तथा बीटीटी सदस्यों के संपर्क में आने के बाद उन्होंने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की और वर्ष 2020 में 2 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया। ‘प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान’ योजना के तहत आयोजित इस शिविर में उन्होंने देसी गाय के गोबर और गोमूत्र से जीवामृत, बीजामृत, दश्पर्नीअर्क, नीमास्त्र और ब्रह्मास्त्र आदि तैयार करने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण के बाद बलदेव सिंह ने साहीवाल नस्ल की गाय खरीदी और लगभग 20 कनाल भूमि पर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती शुरू कर दी।
पिछले सीजन में उन्होंने मक्की के साथ ही सहजीवी फसल के रूप में माह और सोयाबीन की बुआई की। इसके अलावा घीया, लौकी, तोरी, बैंगन, अदरक और हल्दी की बीजाई भी की। इन सभी फसलों में बलदेव ङ्क्षसह ने केवल जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामत और नीमास्त्र का प्रयोग किया। इनके प्रयोग के बहुत ही अच्छे परिणाम सामने आए। उनके खेतों में अच्छी फसलें तैयार हुईं और इनमें कीटों का प्रकोप भी बहुत कम हुआ। बलदेव सिंह ने बताया कि मक्की की फसल में फॉलआर्मी बोरर का प्रकोप होने पर उन्होंने केवल गोमूत्र का स्प्रे किया। इससे फॉलआर्मी बोरर पूरी तरह खत्म हो गया।
बलदेव सिंह के अनुसार प्राकृतिक खेती से जहां खेती की लागत कम हुई है, वहीं पैदावार काफी अच्छी हुई। उन्होंने बताया कि पिछले खरीफ सीजन में उन्होंने खेती पर लगभग 27 हजार रुपये खर्च किए। जबकि, 75 हजार रुपये की आय हुई। यानि प्राकृतिक खेती से उन्हें खरीफ सीजन में लगभग 50 हजार रुपये का शुद्ध लाभ हुआ।
उधर, आतमा की जिला परियोजना निदेशक डॉ. नीति सोनी ने बताया कि प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना के तहत किसानों को देसी नस्ल की गाय पर 25 हजार रुपये, गौशाला के फर्श एवं गोमूत्र एकत्रीकरण की व्यवस्था के लिए आठ हजार रुपये, ड्रम एवं अन्य सामग्री पर 2250 रुपये और भंडारण के लिए दस हजार रुपये सब्सिडी दी जाती है। डॉ. नीति सोनी ने बताया कि जिला हमीरपुर में इस समय लगभग नौ हजार किसान करीब 600 हैक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।
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