संजौली कॉलेज में पृथ्वी के विकास की व्याख्या, पढ़िये पूरी खबर
शिमला। हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट), शिमला द्वारा ग्लोरियस साइंस वीक – विज्ञान सर्वत्र पूज्यते एक सप्ताह के लंबे कार्यक्रम का छठा दिन (27 फरवरी 2022) सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, संजौली, शिमला में मनाया गया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. ए.डी. अहुलवालिया, भूविज्ञान विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के सेवानिवृत्त प्रोफेसर थे। उनका व्याख्यान चौथे विषय नेक्स्ट 25 इयर्स पर आधारित था। उनका विषय था एक महान राष्ट्र का निर्माण: अगले 25 वर्षों में हमारे सुंदर भारतीय परिदृश्य में नागरिक वैज्ञानिक बनाना। उन्होंने मानव पृथ्वी विरासत पर निष्क्रिय सत्र दिया, विशेष रूप से छात्र को भूवैज्ञानिक विज्ञान का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने साझा किया कि देश की समृद्ध संपदा भूवैज्ञानिक संसाधनों और स्थलों पर है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार और यूनेस्को को भारत में जियो पार्कों की पहचान करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी प्रेरणा के स्रोत श्री चंद्र वोहरा, भारतीय के पहले भूविज्ञानी थे जो की माउंट एवरेस्ट पर चढे थे। उन्होंने पृथ्वी और पर्यावरण आउटरीच पर छात्रों का मार्गदर्शन किया: मानवता को सशक्त बनाना जिसमें समाज के लिए ग्रह पृथ्वी-पृथ्वी विज्ञान बेहतर ज्ञान के लिए प्रेरणा दे रहे हैं। उन्होंने आगे पृथ्वी के विकास की व्याख्या की, जिसमें विवर्तनिक सिद्धांत, प्लेट का निर्माण, विकसित प्रकार की विशेषताएं, भूवैज्ञानिक खतरे आदि शामिल थे। खतरों के संबंध में, हिमालय भूवैज्ञानिक उपद्रव से ग्रस्त हैं जो स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं। अंत में उन्होंने सुझाव दिया कि भारत की समृद्धि के लिए भारत की भू-पर्यटन क्षमता और समृद्ध विविधता के माध्यम से शो कास्टिंग की आवश्यकता है।
प्रोग्राम के दूसरे वक्ता अनिल ठाकुर, एसोसिएट प्रोफेसर, आरकेएमवी, शिमला थे | उनका व्याख्यान मानव कल्याण के लिए पादप विविधता विषय पर था। उन्होंने औषधीय पौधों के संदर्भ में भारत की समृद्ध पुष्प विविधता के बारे में बताया। भारत में औषधीय पौधों की 1748 प्रजातियां उपलब्ध हैं, जिनमें से 1123 जम्मू-कश्मीर में और 643 हिमाचल प्रदेश में उपलब्ध हैं। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में पाए जाने वाले विभिन्न पौधों के औषधीय मूल्यों और उनके व्यावसायिक मूल्य के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने हिमाचल में पाए जानी वाली लोकल वनस्पतियाँ जेसे की बणा, बसुटी, लोंगलता, तुलसी, शतावरी, अलोवेरा आदि की मह्तवता पर प्रकाश डाला|
श्री सतपाल धीमान, अतिरिक्त सचिव, पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और संयुक्त सदस्य सचिव, हिमकोस्ट ने आज के कार्यक्रम के सत्र की अध्यक्षता की | जिसमे हिमकोस्ट के कर्मचारी व् विभिन्न कॉलेजों के छात्र मोजूद थे।