हिमाचल
सफलता की कहानीः हिमाचल के नरेश ने 1050 रुपए में शुरू किया सूअर पालन, अब कमा रहा इतना मुनाफा
ऊना। प्रदेश सरकार की अनेकों योजनाएं वरदान बनकर लोगों की आजीविका में सहायता कर रही हैं। पशु पालन विभाग के माध्यम से चलाई जा रही सूअर पालन योजना भी एक ऐसी हो योजना है, जिससे अच्छी आमदनी कमाई जा सकती है।ऊना जिला के बंगाणा उपमंडल के अंर्तगत पड़ते गांव नेरी ग्राम पंचायत बुधान के नरेश कुमार ने कोरोना संकट के बीच गाड़ी चलाने का कार्य छोड़कर सुअर पालन का व्यवसाय अपनाया और आज बेहतर ढंग से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। नरेश बताते हैं ”पशु पालन विभाग के अधिकारियों ने मुझे सूअर पालन के लिए प्रोत्साहित किया। गत वर्ष मात्र 1050 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से दो यूनिट सूअर लिए थे, बाकी की धनराशि सरकार ने सब्सिडी के रूप में दी। वर्तमान में वह 65 सूअरों का पालन कर रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने 40 सूअरों की सेल भी की है, जिससे उनको लगभग डेढ़ लाख रूपये का शुद्ध मुनाफा हुआ है।
सूअर पालन योजना के तहत एक यूनिट लेने के लिए किसान को बहुत कम धनराशि खर्च करनी पड़ती है। इस योजना के तहत किसान को लागत का केवल 5 प्रतिशत खर्च ही वहन करना है। सूअर पालन के लिए नब्बे प्रतिशत सब्सिडी केंद्र सरकार तथा 5 प्रतिशत सब्सिडी प्रदेश सरकार की ओर से दी जा रही है। प्रत्येक लाभार्थी को तीन मादा तथा एक नर सूअर उपलब्ध करवाया जाता है, बाजार में जिनकी कीमत लगभग 17 हज़ार रुपए है। इसके अलावा किसान को चार हज़ार रुपये की दवाएं‚ फीड तथा आवश्यक उपकरण भी साथ प्रदान किए जा रहे हैं। नरेश कुमार ने कहा “पशुपालन विभाग सुअर पालन में काफी सहयोग दे रहा है। विभाग के अधिकारी समय-समय पर आकर निःशुल्क दवाईयां, फीड व अन्य उपकरण उपलब्ध करवाते हैं। अब मुझे शेड बनाने के लिए भी डेढ़ लाख रूपये स्वीकृत हो चुके हैं। जिसके लिए ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर का धन्यवादी हूं।” उन्होंने बेरोजगार युवाओं को सरकार के माध्यम से चलाई जा रही स्वरोजगार की योजनाओं का लाभ लेकर अपनी आमदनी बढ़ाने की अपील की है ताकि वह भी आत्मनिर्भर बन सकें।
पशु चिकित्सालय लठियाणी के प्रभारी डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि पिछले वर्ष नरेश कुमार को सरकार ने दो यूनिट सूअर देकर इस व्यवसाय से जोड़ा गया था। उन्होंने कहा कि पशु चिकित्सालय लठियाणी के तहत इस योजना के अंतर्गत छह यूनिट सूअर और भी दिए हुए तथा सभी अच्छा काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पशु पालन में विभाग हर प्रकार से सहायता करता है। पशुओं के लिए निशुल्क उपचार तथा कृमिनाशक दवाएं घर-द्वार पर दी जाती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सूअरों की कई नस्लें व्यावसायिक तौर पर पालन के लिए उपयुक्त हैं, जिनमें व्हाइट यॉर्कशायर, लैंडरेस तथा मिडल व्हाइट यॉर्कशायर शामिल हैं। उपमंडल बंगाणा के वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. सतिंदर ठाकुर ने बताया कि एक सूअर की अधिकतम आयु पांच वर्ष होती है। जबकि एक मादा सूअर एक साल के बाद वर्ष में दो बार गर्भ धारण कर सकती है और एक बार में अधिकतम 12 बच्चों को जन्म दे सकती है। मादा सूअर अधिकतम चार साल की आयु तक गर्भ धारण कर सकती है।
बाद में इसे भी मीट के लिए प्रयोग किया जा सकता है। साल भर में पूर्ण परिपक्वता को प्राप्त होने वाले शिशु से एक लगभग 70 से 80 किलोग्राम तक मांस प्राप्त किया जा सकता है। बाज़ार में सूअर का मांस लगभग 240 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता है। एक शिशु बाज़ार में दो हज़ार रुपये और पूर्ण परिपक्व सुअर 10‚000 रुपये तक बिकता है। इस योजना में निवेश की लागत कम है और लाभप्रदता बहुत ज्यादा है। उन्होंने बेरोजगार युवाओं से पशु पालन विभाग की योजनाओं को लाभ लेने के लिए नजदीकी पशु चिकित्सालय में संपर्क करने की अपील की है। वहीं ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा कि कोरोना संकट में पशु पालन का व्यवसाय लोगों की आजीविका का एक प्रमुख साधन बना है। बहुत से लोग बकरी पालन, सूअर, मुर्गी तथा डेयरी फार्मिंग के कार्य से जुड़े हैं। किसान अच्छी नस्लों के पशु पालें, ताकि उन्हें भरपूर लाभ मिल सके। विभाग के अधिकारी इसमें पूर्ण सहयोग करते हैं। पशु पालन के लिए शैड बनाने को मनरेगा के माध्यम से भी मदद की जाती है।
बाद में इसे भी मीट के लिए प्रयोग किया जा सकता है। साल भर में पूर्ण परिपक्वता को प्राप्त होने वाले शिशु से एक लगभग 70 से 80 किलोग्राम तक मांस प्राप्त किया जा सकता है। बाज़ार में सूअर का मांस लगभग 240 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता है। एक शिशु बाज़ार में दो हज़ार रुपये और पूर्ण परिपक्व सुअर 10‚000 रुपये तक बिकता है। इस योजना में निवेश की लागत कम है और लाभप्रदता बहुत ज्यादा है। उन्होंने बेरोजगार युवाओं से पशु पालन विभाग की योजनाओं को लाभ लेने के लिए नजदीकी पशु चिकित्सालय में संपर्क करने की अपील की है। वहीं ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा कि कोरोना संकट में पशु पालन का व्यवसाय लोगों की आजीविका का एक प्रमुख साधन बना है। बहुत से लोग बकरी पालन, सूअर, मुर्गी तथा डेयरी फार्मिंग के कार्य से जुड़े हैं। किसान अच्छी नस्लों के पशु पालें, ताकि उन्हें भरपूर लाभ मिल सके। विभाग के अधिकारी इसमें पूर्ण सहयोग करते हैं। पशु पालन के लिए शैड बनाने को मनरेगा के माध्यम से भी मदद की जाती है।