कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लूहिमाचल

*मीलट अभियान को आगे बढ़ाने में कृषि विवि का योगदान महत्वपूर्णः शुक्ल*

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कांगड़ा। राज्यपाल  शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि विश्व जब अंतर्राष्ट्रीय श्रीअन्न वर्ष मना रहा है तब भारत इस अभियान की अगुवाई कर रहा है। इस अभियान को आगे बढ़ाने में कृषि विश्वविद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।




राज्यपाल आज चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में ‘‘मिलट्स फॉर न्यूट्रिशनल सेक्योरिटी’’ विषय पर आयोजित सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मोटे अनाज की अधिक आवश्यकता है, जिसे हम भूल गए थे। प्रधानमंत्री ने इसे श्रीअन्न का नाम दिया। उन्होंने कहा कि दुनिया में भारत ही श्रीअन्न का सबसे बड़ा उत्पादक है। यह वैश्विक उत्पादन में 20 प्रतिशत और एशिया के उत्पादन में 80 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। उन्होंने कहा कि भारत के प्रस्ताव पर ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 मार्च, 2021 को घोषणा की कि 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष’ के रूप में मनाया जाएगा। साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर मनाया जा रहा है, जो भारतीयों के लिए गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि दुनिया में श्रीअन्न की 13 किस्में मौजूद है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 के लिए 8 अनाजो बाजरा, ज्वार, रागी, कुटकी, संवाक, कंगनी, चेना और कोदो को शामिल किया गया है।




राज्यपाल ने कहा कि विश्व के 131 देशों में इनकी खेती की जाती है। ज्यादातर श्रीअन्न को उगाना आसान होता है और इसमें खर्च भी कम होता है। दूसरी फसलों की तुलना में ये जल्दी तैयार भी हो जाता है। इनमें पोषण तो ज्यादा होता ही है, साथ ही स्वाद में भी विशिष्ट होते हैं। इसलिए वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे विश्व में श्रीअन्न बहुत बड़ी सौगात की तरह हैं। उन्होंने कहा कि ये अभियान भारत के लोगों में कुपोषण की समस्या दूर करने में भी बड़ी भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि हार्वर्ड टी.एच. चेन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की ओर से नेचर जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2050 तक भारत के लोगों में आयरन और जिंक की कमी एक बड़ी समस्या बन सकती है। उन्होंने कहा कि आज भी भारत में लगभग 50 फीसदी जनसंख्या, जिसमें 61 फीसदी गर्भवती महिलाएं हैं, में आयरन की कमी देखी जाती है। इस कुपोषण को दूर करने में श्रीअन्न महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन्हें सुपरफूड भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक भारत और आसपास के देशों में श्रीअन्न खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।




शुक्ल ने कहा कि श्रीअन्न जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से भी बहुत अधिक प्रभावित नहीं होते हैं। इसी कारण इन्हें ‘क्लाइमेट – स्मार्ट’ अनाज के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने कहा कि भारत में 12-13 राज्यों में श्री अन्न की खेती होती है और आज ये खपत बढ़कर 14 किलो प्रति माह हो गई है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में श्रीअन्न फसलों का क्षेत्र लगभग 6.71 हजार हेक्टेयर और वार्षिक उत्पादन 5.88 हजार टन है। उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने भी श्रीअन्न के उत्पादन को बढ़ाने और लोगों में इनके फायदों को लेकर जागरूकता बढ़ाने का कार्य करने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि भारत को विश्वगुरु बनाने में कृषि वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान होगा और वे मोटे अनाज को पुनः स्थापित कर यह काम कर सकते हैं।




विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एच.के.चौधरी ने राज्यपाल को सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल, जो विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी है, के मार्गदर्शन में देश के 74 कृषि विश्वविद्यालयों में चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय को आठवां स्थान प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक तकनीक के माध्यम से यहां के वैज्ञानिक किसानों को लाभान्वित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने कृषि दूत बनाने का जो निर्णय लिया था उसी का ही परिणाम है कि आज किसानों में जागृति आई।




उन्होंने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय से प्रेरित होकर अनेक किसानों ने राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त किए हैं। जी.आई. टास्क फोर्स से लेकर अन्य प्रयास किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए यहां किए गए। प्रधानमंत्री के ‘वोकल फॉर लोकल’ की परिकल्पना को विश्वविद्यालय साकार कर रहा है। उन्होंने श्री अन्न के प्रचार पर बल दिया। उन्होंने कहा कि पहाड़ों की अन्न की किस्मों को विश्वविद्यालय के सभी कृषि विज्ञान केंद्र और शोध संस्थानों में प्रायोगिक तौर पर लगाए जाएंगे।




पद्मश्री  नेकराम शर्मा ने इस अवसर पर मुख्य वक्ता के तौर पर कहा कि भारत सरकार के प्रयासों से भविष्य में ‘श्री अन्न’ एक सजीव भोजन के तौर पर उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में ही वह प्राकृतिक कृषि की ओर बढ़े और मीलट उगाना शुरू किया। उन्होंने कहा कि यह हमारी पारम्परिक कृषि है और प्राचीन समय में श्री अन्न उगाया जाता था। लेकिन, जमीन के अत्यधिक दोहन और विकास ने रसायन के उपयोग को बढ़ावा दिया जिससे स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। उन्होंने मोटे अनाज के दिव्य गुणों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यह अन्न रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी सहायक है। उन्होंने नौ तरह के अनाजों की बात कही तथा गौ पालन पर बल दिया। उन्होंने कहा कि श्री अन्न से हमारी संस्कृति भी जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि वनों की विविधता को समझने की आवश्यकता है, जो पौष्टिक फलों से भरपूर हैं। उन्होंने कहा कि अस्पताल से बचना है तो हर व्यक्ति को श्रीअन्न का उपयोग करना चाहिए।




कृषि वैज्ञानिक मंच के अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार ने राज्यपाल का स्वागत। उपायुक्त  निपुण जिंदल, पुलिस अधीक्षक श्रीमती शालिनी अग्निहोत्री, प्राध्यापक, वैज्ञानिक तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।

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