धर्म-संस्कृति

कविता : जाग महाकाल जाग

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कविता

-डॉ. एम डी सिंह   पीरनगर, गाजीपुर यूपी में लंबे समय से ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी से चिकित्सा कर रहे हैं।
जाग महाकाल जाग
जाग जाग जाग जाग
जाग महाकाल जाग



तांडव फिर कर प्रचंड
उद्दंडता हो खंड-खंड
खोल नेत्र तीसरी
आज अभी इसी घड़ी
बच न पाए कुछ अखण्ड
विध्वंस की लगे झड़ी
उठ उठ विकराल जाग
जाग महाकाल जाग



दिशाभ्रमित भावों को
अनवरत चिंताओं को
चल आ भस्माभूत कर
जला जला भभूत कर
उठा उठा भर मुट्ठी
उत्तप्त राख प्रसूत कर
रगड़ रगड़ भाल जाग
जाग महाकाल जाग
डम-डम डमरुनाद कर
बम-बम आह्लाद कर
कस मुट्ठी पकड़ बना
त्रिशूल के वाद पर
जिह्वा रुके कंठ रुंधे
व्याधि भी न एक क्रुधे
बजे न अन्य गाल जाग
जाग महाकाल जाग



हैं विषमुख विचर रहे
डर जगत में भर रहे
वे विष के प्रपात से
भुवन सागर भर रहे
झटपट जाग नीलकंठ
गटक गरल ले आकण्ठ
गले धर कराल जाग
जाग महाकाल जाग



नाच शिवा नाच नाच
रोगांणु के सर नाच
जीवांणु के घर नाच
विषाणुओं पर नाच
खोल खोल बाल नाच
अब तो नटराज नाच
तोड़ माया जाल जाग
जाग महाकाल जाग

किया नहीं जो अभी तक करके देखें

किया नहीं जो अभी तक करके देखें
जिंदगी पर पड़ी है कुछ डरके देखें



दुश्मन निरंतर राह अपनी बदल रहा
नवपथ पर कदम हम भी धरके देखें



उकसा रहा हमें लड़ने को देखिए
हम भी चतुराई से उबर के देखें



कहीं चल कर कोरानादानी गढ़ कर
घुसपैठ उसमें ख़ुद को भर कर देखें



नित्य रूप बदल रहा वो हम क्यों नहीं
कुछ हम भी दोस्त बदल संवर के देखें

लो फिर आई होली

जीवन के बहुरंगों को
उल्लास और उमंगों को
थके मनुष्य के नस-नस भरने
लो फिर आई होली



दुख गुलाल संग उड़ा देने को
कलुष मिठास में पगा देने को
सुप्त संबंधों को जागृत करने
लो फिर आई होली



अतीतकंटक भी गले लगाने को
सूखे पुष्पदल पुनः महकाने को
मृत हो रहे पलों में प्राण भरने
लो फिर आई होली



दुख दर्द आग लगा भगाने को
आत्मा देहरंगोली सजा लुभाने को
नित ढलती उम्र में स्फूर्ति भरने
लो फिर आई होली



(सबको होली की बंधतोड़ बधाई)

आंदोलन

– डॉ एम डी सिंह



विरोध और विवेक
जब तक रहें साथ
हिंसक नहीं होंगे हाथ
इच्छाएं लक्ष्य पर अड़ी रहेंगी
बिन भटके खड़ी रहेंगी
आतंक नहीं
आंदोलन जन्म लेगा



लक्ष्य पाने की जिद्द
पीड़ा सहने का माद्दा
भय को पराजित करेंगे
अभय धुआं बन कर फैलेगा
समसोची दिमागों को अपनी चपेट में लेगा
सुलगेगा धू-धू कर जलेगा
लोग भविष्य की आतताई परिणामों को
दरकिनार करेंगे
आंदोलन चल पड़ेगा



जब चेतना चित पर घर बना लेगी
मन को पकड़कर भीतर बिठा लेगी
धारणा पर धैर्य सवार हो जाएगा
विरोधी लक्ष्य साधक योगी बन जाएगा
हठ तप को जन्म देगा
तप विस्मयकारी ताकत को
प्रतिरोध विखंडित होने लगेंगे
आंदोलन लक्ष्य के निकट होगा



विकार और विध्वंस विलुप्त हो जाएंगे
विरोध की विवेचना विवेक को साधेगी
गाठें खुलेंगी अवरोध अवमुक्त हो जाएंगे
गूंगा भी बोलेगा बहरा भी सुनेगा
प्रतिरोधी सर सत्य के आगे झुकेगा
साधक समाधि को
आंदोलन आनंद को पा लेगा।



आया पतझड़

जाते शिशिर आते बसंत का
दिख रहा आता संदेशू
हिल रहे मुरझाए पीत पर्ण
वृक्षों में हलचल जागी
आया पतझड़
शीत आखिरी जोर लगाता
पश्चिमी हवाओं को उकसाता
श्वेत चादर उढ़ा पृथ्वी को
पथ पथिक दोनों को भरमाता
थक हार जाने को है
आया पतझड़



गेहूं सरसों चना मटर ने
अलसी लतरी और रहर ने
चादर बिछा धरती पर हरा
तरुवरों को हांक लगाया
उठो-उठो जागो तुम सब भी
धुलने धूल धूसरित पीत पात को
आया पतझड़



भरभूजन की आंखें चमकीं
भरभूजे की नजरें पेड़ों पर अटकीं
खरहरा खांचा और भरसायं को
फिर जगाने का अवसर आया
पक्षियां ले रहीं अंगड़ाई छोड़ घोंसले
गिलहरी भी ठंड को दिखा रही अकड़
आया पतझड़

डॉ एमडी सिंह


जगे हैं क्या !



जगे हैं क्या पलट कर देखें
सपन नींद से हट कर देखें
कितने जगते खाट छोड़कर
सुप्त दिमाग से कट कर देखें
तंद्रा में चलते बहुतेरे
मन मस्तिष्क से सट कर देखें
खुली आंखें छोड़ देती हैं
बंद आंखों सब रट कर देखें
बहुत समय है बेसुध जाता
सुधियों से मिल पलट कर देखें
-डॉ. एमडी सिंह
(गाजीपुर यूपी में कई सालों से ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी की चिकत्सा कर रहे हैं)



कविता



जाई कोरोना 

भइया छोड़ि दा रोना-धोना
लग्गी टीका जाई कोरोना
जिन भागा चला हाथ बढ़ावा
टिकवइयन से बोला लगावा
लगवा के सूई सुनि ल पहिले
अउरी सभन के जा सहकावा
बन्नल तब्बै रही चोना-मोना
लग्गी टीका जाई कोरोना
त रही बहुरिया तूहूं रहबा
जिउ जवन चाही ऊहै करबा
न कारन करि-करि केहू रोई
जिनगी जेतना चाही जियबा
चल्ली ना फेरु केहू क टोना
लग्गी टीका जाई कोरोना
कहा लगवाके सबसे आके
रहीमा रजुई चुम्मन बाँके
किछु हेन-तेन न घोखैं सगरी
धउड़ैं जल्दी लगवावैं जाके
त रीन्हें चाउर अउर निमोना
लग्गी टीका जाई कोरोना
अउर सभन के एक ना जूरल
हमनी क दुद्दू दुद्दू गो पूरल
सगर जगत हमनिये से पाई
हमन के हण्डा वैक्सीन चूरल
बगैर टीका लगल केहू हो ना
लग्गी टीका जाई कोरोना
सहकावा-उकसाइये
चोना-मोना – प्यार-मोहब्बत
बहुरिया- पत्नी
हेन-तेन – आनाकानी
रीन्हना- पकाना
-डॉ. एमडी सिंह पीरनगर,
(गाजीपुर यू पी में कई सालों से ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी की चिकत्सा कर रहे हैं)



तेरी बातों में न आ जाऊं इसलिए मुकर रहा हूं..

कविता
-डॉ. एम डी सिंह   पीरनगर, गाजीपुर यूपी में लंबे समय से ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी  की चिकत्सा कर रहे हैं।
तेरी बातों में न आ जाऊं इसलिए मुकर रहा हूं,
कहीं तुझसे न उलझ जाऊं बच-बच के गुज़र रहा हूं।
तेरी बातों के सलवटों में करवटें गिनते-गिनते,
ख्वाबों की खाईयों में धीरे-धीरे उतर रहा हूं।
उनसे मिल के मेरी आदत कहीं और न बिगड़ जाए,
लो देख भी लो यारों मैं इसी डर से सुधर रहा हूं।
किसी दामन पे लग न जाऊं कहीं दाग बनके मैं भी,
अपनी शरारती हरकतों के परों को कुतर रहा हूं।
कहो जाके बिजलिओं को और गिरने से बाज़ आएं,
चोट खाने की आदतों से लम्हा-लम्हा उबर रहा हूं।
डॉ. एम डी सिंह  
पीरनगर, गाजीपुर यूपी में लंबे समय से ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी  की चिकत्सा कर रहे हैं।


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