महामारी के बाद भी बनी रहेगी ऑनलाइन शिक्षा : नायडू
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने आज डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए जन आंदोलन का आह्वान किया।उन्होंने सभी तकनीकी और शैक्षणिक संस्थानों से इसमें अग्रणी भूमिका निभाने का आग्रह किया।आदि शंकराचार्य की जन्मस्थली कलाडी में आदि शंकरा डिजिटल अकादमी लॉन्च करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान ज्ञान समाज में सूचना मुख्य वस्तु है। जो भी त्वरित पहुंच रखता है उसे सूचना का लाभ मिलता है।
उन्होंने ‘डिजिटलीकरण’ को इस तरह की जानकारी तक पहुंच का माध्यम कहा।कोविड-19 महामारी के कारण होने वाली बाधाओंकी चर्चा करते हुएश्री नायडू ने कहा कि महामारी ने स्कूलों को बाध्य रूप से बंद किया जिससे लाखों छात्र कक्षाओं से बाहर हो गए हैं और विश्व समुदाय ऑनलाइन शिक्षा को अपनाकर इस चुनौती को दूर करने की कोशिश कर रहा है।उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी हमें शिक्षण और सीखने की पद्धति को बदलने का अवसर प्रदान करती है और तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी के अनुसार नए युग की मांगों के अनुरूप शिक्षा मॉडल को लगातार अद्यतन और विकसित करने की आवश्यकता है।ऑनलाइन शिक्षा के कई लाभों की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह दूरदराज के क्षेत्रों में गुणवत्ता और सस्ती शिक्षा तक पहुंच को सक्षम बना सकता है।यह व्यक्तिगत सीखने का अनुभव देता है। यह विशेष रूप से ऐसे पेशेवरों और गृहिणियों के समूहों के लिए उपयोगी है जो नियमित पाठ्यक्रम में भाग नहीं ले सकते।उन्होंने कहा कि कोविड-19 से पहले भी, शिक्षा में प्रौद्योगिकी को अपनाने की गति जारी थी। नायडू ने कहा कि वैश्विक एडटेक क्षेत्र अरबों डॉलर के निवेश को आकर्षित कर रहा है और न केवल शिक्षार्थियों को बल्कि शिक्षा कर्मियों को भी एक बड़ा अवसर दे रहा है। उन्होंने युवाओं को आगे आकर इस क्षेत्र की क्षमता का दोहन नवाचारी तरीकों से करने को कहा।उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने हमें प्रतिकूल परिस्थितियों में सामाजिक-आर्थिक प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए सीखने पर बाध्य किया है।उन्होंने कहा कि इस अनुभव से यह प्रश्न उभरा है कि कितने लोग डिजिटल तरीके से जीने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहाकिबुनियादी ढांचे की उपलब्धता, कम्प्यूटर और स्मार्ट फोन जैसे आवश्यक उपकरणों तक पहुंच, इंटरनेट की गति और उपलब्धता के मुद्दे सामने आएहैंजिनके लिए समाधान खोजने की जरूरत है।उपराष्ट्रपति ने सचेत करते हुए कहा कि ऑनलाइन शिक्षा क्या दे सकती है और क्या नहीं कर सकती इस बारे में वास्तविक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन कक्षाएं चैट समूहों, वीडियो बैठकों, वोटिंग और दस्तावेज साझा करने के माध्यम से बेहतर शिक्षक-छात्र इंटरऐक्शन की सुविधा प्रदान करती हैं।लेकिन यह कक्षा का स्थान नहीं ले सकता।उन्होंने कहा कि प्राचीन गुरुकुल प्रणाली में गुरु और शिष्य के बीच सीधा संबंध बनाने का प्रयास होता था।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि समर्थ गुरु से ‘निकटता’बच्चों को मूल्य आधारित और समग्र शिक्षा प्रदान करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने सीखने, सोचने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए रट-रटकर सीखने की आदत समाप्त की जानी चाहिए।उन्होंने औद्योगिक क्रांति 4.0 के लिए राष्ट्र को तैयार करने और तकनीकी दृष्टि से नागरिकों को सशक्त बनाने को कहा। उन्होंने कहा कि मुख्य उद्देश्य सभी संभव तरीकों से जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।देश में ‘एक समतामूलक डिजिटल इको-सिस्टम’ की स्थापना करने का आह्वान करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ‘डिजिटल इंडिया’ को सक्षम बनाने में सामूहिक प्रयास के लिए सरकारों और निजी क्षेत्र को उचित मॉडल पर काम करने की जरूरत है।प्रत्येक नागरिक को उसका वाजिव मिले।