शिक्षा

नज़रियाः टूट चुका है अब मनोबल

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राजीव भूषण अम्बिया

आज समूचा समाज व संसार एक महामारी की चपेट से गुज़र रहा है।  यह बात न तो किसी से छुपी है न इस बात को कोई नकार सकता है की आज लोग डर व असंतोष की ज़िंदगी जीने को मजबूर है । लोगों को यह भी कहते सुना गया की हर 100 वर्ष बाद इस तरह की महमारी एक बार आती ही आती है। इस बात का अनुमान 1819 मे हुए स्पेनिश फ्लू को लेकर लोग लगाते आ रहे हैं। इस बात से भी कोई मुकर नहीं सकता की अब लोग इस बीमारी के साथ जीने की आदत अब डाल रहे हैं । बीते वर्ष में जाने कितनी कीमती ज़िंदगियों को यह काल अपना ग्रास बना चुका है, यह भी सब जानते हैं। जब भी आमजन से बात होती है तो हर कोई यह कहता है की पता नहीं कब इस से निजात मिलेगी। मैं यह कहूँ की हर कोई शख़्स इस महमारी से अब तंग आ चुका है,तो कोई दो राय नहीं होगी ।उस दर्द को कभी भी शब्दों में व्यां नहीं किया जा सकता , उन लोगों के दर्द को मैं कैसे बयां कर सकता हूँ जिन लोगों ने अपनों को खो दिया है । उनके इस दर्द को शायद ही कोई समझ पाएगा जो अपने परिवार के सदस्य को अंतिम विदाई भी नहीं दे पाये । समूचा संसार आज एक गहन दर्द से गुज़र रहा है , जिस कारण लोगों के आत्मविश्वास मे बहुत कमी आई है। मनोबल टूटा है, मानसिक तौर पर कमजोर होना या इसको खो देना कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि जिन्होने अपनों को खो दिया और वे उस इंसान के अंतिम समय मे उसको देख तक नहीं पाए।  होने को यह भी हो सकता है कि वो व्यक्ति एकांत का शिकार हो गया हो । उसका मानसिक संतुलन या उसके आत्मविस्वास को इतनी ठेस पहुंची हो कि वो उस समय में उसको सहन न कर पाया हो। हम किसी भी स्थिति का आकलन सही में नहीं कर सकते ना ही कर पा रहें हैं । हर रोज़ एक नई खबर सुनने को मिलती है , क्या सच मे आज यह स्थिति इतनी भयानक है की हर कोई इस से दूर जाना चाहता है और अपनों को अंतिम विदाई भी नहीं दे पा रहे है।

आज इस महामारी मे हम लोग संस्कारों का संस्कार होते देख रहे हैं,आए दिन इंसानियत को बलि चढ़ते देख रहे हैं।  और सभी उसको देख रहे है। क्या इस बात को सोच अचरज नहीं होता है कि हमारी संस्कृति यह कहती थी कि अन्तिम समय मे संस्कार में जाना बहुत पुण्य का काम होता है । वहीं दूसरी तरफ इससे इंसान आज भाग रहा है। आखिर आज हमारे हिदुत्व को क्या हो गया ? क्या हमारा जमीर मर चुका है या आंतविसवास इतना कमजोर हो चुका है कि हम इस सब को देख रहे है? मैं निजी तौर पर कहूँ तो आज लोगों का आत्मविस्वास व मनोबल कम हो रहा है।

……अम्बिया

  सबके आत्मविसवास मे इतनी कमी आ गई है कि आने वाली कई सदियाँ कम पड़ेगी इसको बढ़ाने में । आज पूरा विश्व इस महामारी की चपेट में है पर क्या इस पर चलाई जा रही धारणा क्या आने वाले समय मे घातक सिद्ध नहीं होगी ? क्यों आज वो विशेषज्ञ चुप बैठे हैं ? क्यों आज लोगों के मनोबल को बढ़ाने के बजाए कम किया जा रहा है । हम सभी को यह समझना होगा की हर स्थिति में मनुष्य को अपने मनोबल को मजबूत करना होगा, जो की आज हम नहीं कर पा रहे हैं । आज जब भी टीवी चलाते हैं तो उस पर एक खबर चलायी जा रही है, उसके लिए समय निर्धारित नहीं किए जा रहे। सीधा- सा प्रश्न है कि किन आमजन के मनोबल को कमजोर किया जा रहा है।  जहां तक मैं समझ रहा हूं कि मनुष्य इतना भी कमजोर नहीं है।  और न था पर उसको कमजोर किया जा रहा है। उसके मनोबल के साथ खेला जा रहा है । आज हमें खुद को मजबूत करने की जरूरत है। क्या यह एक सोची समझी साजिश नहीं हो सकती ? आज इस महामारी के दौर मे होने को कुछ भी हो सकता है ।

आज इंसान की भावनाओं के साथ मजाक हो रहा है।  बीते वर्ष के साथ इस महामारी ने सबको इतना कमजोर कर दिया की सभी मात्र ज़िन्दा रहने को अपनी खुद की तरक्की समझ रहे हैं । इस स्थिति में मानसिक दशा को आंक पाना इतना आसान नहीं पर पत्राचार के माध्यम से सभी सरकारों से अपील करना चाहूँगा कि मनोबल की मजबूती बाले कार्यक्रम पर ध्यान देने की जरूरत है ।

……अम्बिया

अम्बिया कहते है कि आज इंसान की भावनाओं के साथ मजाक हो रहा है।  बीते वर्ष के साथ इस महामारी ने सबको इतना कमजोर कर दिया की सभी मात्र ज़िन्दा रहने को अपनी खुद की तरक्की समझ रहे हैं । इस स्थिति में मानसिक दशा को आंक पाना इतना आसान नहीं पर पत्राचार के माध्यम से सभी सरकारों से अपील करना चाहूँगा कि मनोबल की मजबूती बाले कार्यक्रम पर ध्यान देने की जरूरत है । इस मुश्किल समय मे लोग रोजगार के साथ साथ अपनी कमाई हुई अजीवका को भी खत्म कर चुके हैं। और आज इस पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। आज हर इंसान यह सोच रहा है। कि कल पता नहीं कौन होगा कौन नहीं? बजाए इसके की वो अपने मनोबल को मजबूत रखें । आज हम सभी को इस महामारी को देखते हुए लंबा समय बीत गया पर हम आजतक नहीं समझ पाये कि अपने मनोबल व इच्छाशक्ति को हमें खुद बनाए रखना होगा, इसके लिए कोई दूसरा नहीं आएगा पर हम लोगों को खुद अपने आप का आत्ममंथन करना होगा व अपनी व अपने परिवार की खुद ही सहायता भी करनी होगी । इस सब के बीच जैसे तैसे अब ज़िंदगी पटरी पर आ ही रही थी कि अब नए वेरिएंट ने दस्तक देना शुरू कर दिया। ज़िंदा तो है पर क्या यही जीना अब हो गया है । अब लगने लगा है की ज़िंदगी सस्ती हो गई है और जीना अब महंगा हो गया है।

राजीव भूषण अम्बिया, गाँव भोल जवाली जिला कांगड़ा।

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