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सांपों के देवता गोगा जाहर वीर जी महाराज, आइये सुनें गुणगान

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रक्षाबंधन के बाद पूरे हिमाचल प्रदेश में गोगा जाहरवीर जी का गुणगान किया जाता है। हर इलाके की स्थानीय मंडलियां होती हैं। इन मंडलियों की ओर से गोगा जी का गुणगान किया जाता है। गुग्गा नवमी तक चलने वाले उस उत्सव को लेकर प्रदेश में खास उत्साह रहता है। मंडलियां घर-घर जाकर गोगा जाहरवीर जी का गुणगान करती हैं। खास बात है कि इन नौ दिन तक इन मंडलियों के सदस्य जूते तक नहीं पहनते। मान्यता है कि गोगा जाहरवीर जी अपने श्रद्धालुओं की रक्षा करते हैं।



गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हें ‘जाहरवीर गोगा राणा के नाम से भी जाना जाता है। गोगा जाहरवीर जी को हिमाचल में भी पूजा जाता है। लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर,राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है। गोगा देव गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य थे। उनका जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गांव में हुआ था। सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में स्थित है जहां पर सभी धर्म और संप्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं।


मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्धा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादों सुदी नवमी को हुआ था। लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर,राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। गोरखटीला स्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर शीश नवाकर भक्तजन मनौतियां मांगते हैं। विद्वानों व इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है।


मुख्य कथा : राजस्थान के महापुरुष गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की मां बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरु गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरु गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।
दूसरे शब्दों में गोगा देव महाराज से संबंधित एक किंवदंती के अनुसार गोगा देव का जन्म नाथ संप्रदाय के योगी गोरक्षनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। योगी गोरक्षनाथ ने ही इनकी माता बाछल को प्रसाद रूप में अभिमंत्रित गुग्गल दिया था जिसके प्रभाव से महारानी बाछल से गोगा देव (जाहरवीर) का जन्म हुआ।
आइये सुनते हैं कुछ मंडलियों से गोगा जाहरवीर जी का गुणगान




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