अर्थात : ये कबीर जी का दोहा है। इसमें कहा गया है कि उस परमशक्ति , परमपिता , परमात्मा के बिना इस दुनिया में किसी भी जीव का अस्तित्व संभव नहीं है। हर जीव में वही परमशक्ति निवास करती हैं कबीर साहिब जी इस दोहे में यही कह रहे हैं कि मैं बलिहारी जाऊं उस रूह, उस जीव पर जिस जीव में वह प्रकट हुआ है। असल में गुरु ही वह निर्मल रूह होती है जिस में वह प्रकट होता है, और दुनिया को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जता है।